भारत का राष्ट्रीय आंदोलन और स्वतंत्रता प्राप्ति (1885-1947 ई०)

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन भारत के लोगों के हित से संबंधित जन आंदोलन था जो पूरे देश में फैल गया था। देश भर में कई बड़े और छोटे विद्रोह हुए थे और कई क्रांतिकारियों ने ब्रिटिशों को बल से या अहिंसक उपायों से देश से बाहर करने के लिए मिल कर लड़ाई लड़ी और देश भर में राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया।
भारत को मुक्त कराने के लिए सशस्त्र विद्रोह की एक अखण्ड परम्परा रही है। भारत में अंग्रेजी राज्य की स्थापना के साथ ही सशस्त्र विद्रोह का आरम्भ हो गया था। बंगाल में सैनिक-विद्रोह, चुआड़ विद्रोह, सन्यासी विद्रोह, भूमिज विद्रोह, संथाल विद्रोह अनेक सशस्त्र विद्रोहों की परिणति सत्तावन के विद्रोह के रुप में हुई।
भारत की स्वतंत्रता के लिये अंग्रेजों के विरुद्ध आन्दोलन दो प्रकार का था, अहिंसक आंदोलन एवं दूसरा सशस्त्र क्रान्तिकारी आंदोलन। भारत की आजादी के लिए 1857 से 1947 के बीच जितने भी प्रयत्न हुए उनमें स्वतंत्रता का सपना संजोये क्रान्तिकारियों और शहीदों की उपस्थित सबसे अधिक प्रेरणादायी सिद्ध हुई। वस्तुतः भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग है। भारत की धरती के जितनी भक्ति और मातृ-भावना उस युग में थी, उतनी कभी नहीं रही। मातृभूमि की सेवा और उसके लिए मर-मिटने की जो भावना उस समय थी, आज उसका नितान्त अभाव हो गया है।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन ऐतिहासिक घटनाओं की एक श्रृंखला थी जिसका अंतिम उद्देश्य भारत में ब्रिटिश शासन को समाप्त करना था। यह 1947 तक चला था।
भारतीय स्वतंत्रता के लिए पहला राष्ट्रवादी क्रांतिकारी आंदोलन बंगाल से उभरा था। बाद में इसने नवगठित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में जड़ें जमा ली, जिसमें प्रमुख उदारवादी नेताओं ने ब्रिटिश भारत में भारतीय सिविल सेवा परीक्षाओं में बैठने के अधिकार के साथ-साथ मूल निवासियों के लिए अधिक आर्थिक अधिकारों की मांग की। 20वीं सदी के पूर्वार्द्ध में स्व-शासन के प्रति अधिक क्रांतिकारी दृष्टिकोण देखा गया।
1920 के दशक में स्वतंत्रता संग्राम के चरणों की विशेषता महात्मा गांधी के नेतृत्व और कांग्रेस द्वारा गांधी की अहिंसा और सविनय अवज्ञा की नीति को अपनाया था। गांधी की विचारधारा के कुछ प्रमुख अनुयायी जवाहरलाल नेहरु, सुभाष चन्द्र बोस, वल्लभभाई पटेल, अब्दुल गफ्फार खान, मौलाना आजाद और अन्य थे। रवीन्द्रनाथ टैगोर, सुब्रह्मण्य भारती और बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय जैसे बुद्धिजीवियों ने देशभक्ति जागरुकता फैलाई। सरोजिनी नायडू, विजयलक्ष्मी पंडित, प्रीतिलता वादेदार और कस्तूरबा गांधी जैसी महिला नेताओं ने भारतीय महिलाओं की मुक्ति और स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भागीदारी को बढ़ावा दिया।
कुछ नेताओं ने अधिक हिंसक दृष्टिकोण अपनाया, जो रोलेक्ट एक्ट के बाद विशेष रुप से लोकप्रिय हो गये, जिसने अनिश्चितकालीन हिरासत की अनुमति दी। इस अधिनियम ने पूरे भारत में विरोध प्रदर्शनों को जन्म दियां, विशेषकर पंजाब प्रांत में जहां जलियांवाला बाग नरसंहार में उन्हें हिंसक रुप से दबा दिया गया था।