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आदिवासी विद्रोह

आंदोलन ईसवी (वर्ष) प्रभावित क्षेत्र नेतृत्व कारण
भील 1812-1819 खानदेश त्र्यम्बकजी दांगलिया ने भीलों को उकसाया। कृषि संबंधी कष्ट तथा नई सरकार से भय इस विद्रोह का कारण था।
1825, 1831, 1846 1825 में सेवरम द्वारा नेतृत्व
हो 1820, 1822, 1831, 1832, 1837 सिंहभूम (छोटानागपुर) सिंहभूम पर अंग्रेजों का अधिकार।
खासी 1829-1833 असम एवं मेघालय के पहाड़ी क्षेत्र तीरत सिंह एवं बरमानिक अंग्रेजों द्वारा एक सैनिक मार्ग के निर्माण की योजना तथा अंग्रेजों एवं बाहरी लोगों का अतिक्रमण।
सिंह-पो 1830-1839 असम अंग्रेजों द्वारा अतिक्रमण।
कोल 1831-1832 छोटानागपुर (झारखंड) बुद्धोभग, गोमधर कुंवर इनकी भूमि इनसे छीन कर मुस्लिम कृषकों एवं सिखों को दे दी गई।
कोया 1840, 1845, 1858 चोडावरम का रम्पा क्षेत्र नोमा डोरा (1879-80) कोया एवं कोंडा डोरा मुखियों ने अंग्रेजों के साथ समझौता करने पर अपने स्वामी के विरुद्ध 1862 तक विद्रोह किया। 1879 में मनसबदार ने लकड़ी एवं चराई पर कर बढ़ाने की कोशिश की और झूम खेती पर प्रतिबंध लगाया।
1861-62, 1879-80, 1884, 1922-24 राजन अनंतय्या (1884), अल्लूरी सीताराम राजू
खोंड 1846-48, 1855, 1914 खोंडमाल (ओडिशा) चक्रबिसोई अंग्रेज प्रशासकों द्वारा खोंडों की प्रचलित नर बलि की प्रथा ‘मेरिया’ रोकने का प्रयास।
सवार 1856-1857 पार्लियाखेमदी राधाकृष्ण दण्डसेना अंग्रेजों के अनुसार इस आंदोलन का चक्रबिसाई के साथ संबंध था।
संथाल 1855-1856 राजमहल की पहाडियां (झारखंड) सिद्धू एवं कान्हू शुरु में यह विद्रोह महाजन एवं व्यापारियों के खिलाफ था, बाद में पुलिस, गोरे काश्तकार, रेलवे अभियन्ता और अधिकारियों के खिलाफ हो गया।
खेरवाड़ एवं सफाहार 1870 के दशक में राजमहल की पहाडियां भागीरथ शुरु में एकेश्वरवाद एवं सामाजिक सुधार आंदोलन, बाद में राजस्व बंदोबस्त के विरुद्ध अभियान।
नायकड़ा 1858-1868 पंचमहल (गुजरात) रुपसिंह, जोरिया भगत नायकड़ा वन्य जाति द्वारा सहस्त्रवाद में आस्था तथा धर्मराज्य स्थापित करने का प्रयत्न।
कच्छानागा 1822 कछार (असम) संबुदान जादूगर संबुदान को विश्वास था कि इसके अनुयायियों को गोली भी कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकती।
मुंडा (उलगुलान विद्रोह भी कहते हैं) 1899-1900 छोटानागपुर (झारखंड) बिरसा मुंडा भू-स्वामियों के विरुद्ध।
भील 1913 बांसवाड़ा, डूंगरपुर (राजस्थान) गोविंद गुरु शुरु में शुद्धि आंदोलन, पर बाद में भील राज स्थापित करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया।
उरांव 1914-1915 छोटानागपुर (झारखंड) जतरा भगत शुरु में यह आंदोलन एकेश्वरी प्रवृत्ति का था, पर बाद में अंग्रेजों को बाहर खदेड़ना इसका उद्देश्य बन गया।
कूकी 1917-1919 मणिपुर रोंगमेई जदोनांग एवं रानी गैडिनलियु ब्रिटिशों द्वारा ओछे कार्य के लिए आदिवासियों को भर्ती करने का प्रयास, पोथांग एवं झूम खेती बंद करने के विरोध में।