ब्रिटिश साम्राज्य के गवर्नर जनरल एवं वायसराय

ब्रिटिश साम्राज्य में वायसराय की उपाधि का उपयोग आम तौर पर भारत और अन्य प्रमुख औपनिवेशिक संपत्तियों में एक प्रांत, कॉलोनी या उपराष्ट्रीय इकाई के गवर्नर को नामित करने के लिए किया जाता था। वायसराय इस क्षेत्र का सर्वोच्च अधिकारी था और ब्रिटिश सम्राट का प्रतिनिधित्व करता था। दूसरी ओर गवर्नर जनरल की उपाधि का उपयोग ब्रिटिश साम्राज्य के अन्य हिस्सों में किया जाता था। गवर्नर जनरल भी ब्रिटिश सम्राट का प्रतिनिधित्व करते थे और उनके पास वायसराय के समान शक्तियां और जिम्मेदारियां थीं, लेकिन उनके अधिकार क्षेत्र के तहत क्षेत्रों के महत्व के कारण वायसराय का पद अधिक प्रतिष्ठित माना जाता था।
भारत पर ब्रिटिश शासन एक व्यापारिक इकाई के रुप में तब शुरु हुआ जब 31 दिसंबर, 1600 को ईस्ट इंडिया कंपनी ने रानी एलिजाबेथ I (Queen Elizabeth I) से रॉयल चार्टर प्राप्त किया। लगभग तीन शताब्दियों की समयावधि के भीतर ब्रिटिश शासन एक व्यापारिक शक्ति से परिवर्तित होकर दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक शक्तियों में से एक हो गए।
एक छोटा सा द्वीपीय देश होने के बावजूद ब्रिटेन दुनिया में सबसे बड़े साम्राज्यों में से एक के रुप में स्थापित होने में सक्षम हो गया जिसके बारे में अक्सर कहा जाता है कि ‘वह साम्राज्य था जिसका सूर्य कभी अस्त नहीं होता था’।
यह उपलब्धि ब्रिटेन ने अपने उपनिवेशों की मजबूत एवं कुशल नौकरशाही की पृष्ठभूमि में हासिल की। भारत में उसने ब्रिटिश गवर्नर-जनरल और वायसराय के माध्यम से नियंत्रण स्थापित किया था।