प्रांतीय विधायिका का कार्य 1861 के भारत परिषद् अधिनियम के द्वारा प्रारम्भ हुआ था।
बम्बई सरकार को व्यवस्थापिका सम्बन्धी अधिकार 1861 के भारत परिषद् अधानियम के द्वारा दिया गया था।
भारत के शासन के विकेन्द्रीकरण का कार्य 1861 के भारत परिषद् अधिनियम के द्वारा प्रारम्भ हुआ था।
भारत परिषद अधिनियम, 1861 के अन्तर्गत वायसराय की विधानपरिषद में अधिकतम 12 सदस्य नामांकित किए जा सकते थे।
भारत परिषद अधिनियम, 1861 के अन्तर्गत वायसराय की विधानपरिषद में न्यूनतम 6 सदस्यों का प्रावधान किया गया था।
भारत परिषद अधिनियम, 1861 के द्वारा कार्यकारी परिषद के सदस्यों की संख्या 4 से बढ़ाकर 5 कर दी गयी थी।
भारत परिषद अधिनियम, 1861 के द्वारा ही वायसराय को अध्यादेश जारी करने की शक्ति दी गयी थी।
भारत परिषद अधिनियम, 1861 द्वारा भारत में संवैधानिक विकास का सूत्रपात किया गया था।
भारत परिषद् अधिनियम, 1861 के द्वारा अंग्रेजों ने सहयोग की नीति या उदार निरंकुशता की नीति प्रारम्भ की थी।
भारत परिषद् अधिनियम, 1861 के द्वारा बम्बई व मद्रास प्रेसीडेन्सियों को कानून बनाने की शक्ति प्रदान कर विकेन्द्रीकरण की प्रक्रिया की शुरुआत की गयी थी।
भारत परिषद् को भारतीय संदर्भ में कानून बनाने का अधिकार 1861 के भारत परिषद् अधिनियम के द्वारा दिया गया था।
भारत परिषद् को विधायी संस्था बनाने का अधिकार 1861 के भारत परिषद् अधिनियम के द्वारा दिया गया था।
भारतीय उच्च न्यायालय अधिनियम, 1861 के अन्तर्गत कलकत्ता, मद्रास एवं बम्बई के उच्च न्यायालय स्थापित किये गये थे।
भारतीय प्रतिनिधियों को कानून बनाने की प्रक्रिया में शामिल करने की शुरुआत 1861 के भारत परिषद् अधिनियम के द्वारा हुई थी।
मद्रास सरकार को व्यवस्थापिका सम्बन्धी अधिकार 1861 के भारत परिषद् अधिनियम के द्वारा दिया गया था।
वायसराय को अध्यादेश जारी करने का अधिकार 1861 के भारत परिषद् अधिनियम के द्वारा दिया गया था।