कल्याणी के चालुक्य शासक तैलप द्वितीय ने अश्वमल और भुवनैकमल्ल की उपाधियां धारण की है।
कांचीकोण्ड की उपाधि वातापी के चालुक्य वंश के शासक विक्रमादित्य द्वितीय ने धारण की थी।
किस शासक ने ‘सुल्तान-उल-अदल’ की उपाधि धारण कर रखी थी?
कुषाण राजा द्वारा धारण उपाधि ‘देवपुत्र’ को चीनियों से लिया गया था।
कुषाण राजा ने देवपुत्र उपाधि को धारण किया था।
क्षत्रप और महाक्षत्रप दोनों ही उपाधियां नहपान ने धारण की थी।
गंगा घाटी की विजय के उपलक्ष्य में चोल शासक राजेन्द्र प्रथम ने गंगईकोण्ड चोल की उपाधि धारण की थी।
गुप्त राजाओं ने परमभागवत की धार्मिक उपाधि धारण की थी।
गौतमी पुत्र ने वेणकटक स्वामी की उपाधि धारण की थी।
चन्द्रगुप्त द्वितीय ने शाकारि उपाधि को धारण किया था।
चोल शासक विजयालय ने नरकेसरी की उपाधि धारण की थी।
जयसिंह ने सिद्धराज उपाधि धारण की थी।
जयसिंह ने सिद्धराज की उपाधि धारण की थी।
त्रिकलिंगाधिपति की उपाधि कलचुरी शासक कर्णदेव ने धारण की थी।
नरसिंहवर्मन द्वितीय ने राजसिंह, शंकरभक्त तथा आगमप्रिय की उपाधियां धारण की थी।
नरसिंहवर्मन प्रथम ने वातापीकोण्ड एवं महामल्ल उपाधियां धारण की थी।
परमेश्वर वर्मन प्रथम ने रणंजय, लोकादित्य, अत्यन्तकाम, उग्रदण्ड, गुणभाजन एवं विद्याविनीत की उपाधियां धारण की थी।
परान्तक प्रथम ने पाण्डय शासक राजसिंह को हराकर मदुरैकोण्ड की उपाधि धारण की थी।
पुलकेशिन द्वितीय को मारने के बाद नरसिंहवर्मन ने ‘वातापीकोण्ड की उपाधि’ धारण की थी।
पुलकेशिन द्वितीय ने ‘सत्याश्रय’ एवं ‘श्री पृथ्वी वल्लभ महाराज’ की उपाधियां धारण की थी।
पुलकेशिन द्वितीय ने हर्ष को पराजित कर ‘परमेश्वर उपाधि’ धारण की थी।
पुलुमावी ने दक्षिणापथेश्वर की उपाधि धारण की थी।
पुष्यभूति वंश के शासक हर्षवर्धन ने परमभट्टारक तथा उत्तरापथस्वामी की उपाधियां धारण की थी।
प्रतिहार वंश के शासक मिहिरभोज ने ‘आदि वराह’ की उपाधि धारण की थी।
बल्लाल सेन ने गौड़ेश्वर तथा निःशंकर की उपाधि धारण की थी।
बुक्का प्रथम ने कौन सी उपाधि धारण की थी?
बुक्का प्रथम ने वेदमार्ग प्रतिष्ठापक की उपाधि धारण की थी।
महमूद गजनवी ने ‘यमीन-उद्दौला’ तथा ‘यमीन-उल-मिल्लाह’ की उपाधियां धारण की थी।
महापद्मनन्द ने द्वितीय परशुराम की उपाधि धारण की थी।
महेन्द्रवर्मन प्रथम ने विचित्रचित, मत्तविलास एवं गुणभर की उपाधियां धारण की थी।
मुञ्ज ने श्री वल्लभ, पृथ्वी, वल्लभ एवं अमोघवर्ष की उपाधियां धारण की थी।
राजराज प्रथम ने काण्डलूर शालैकलमरूत तथा शिवपादशेखर की उपाधि धारण की थी।
राजाधिराज प्रथम ने कल्याणी विजय के बाद विजय राजेन्द्र की उपाधि धारण की थी।
राष्ट्रकूट वंश के शासक दंतिदुर्ग ने महाराजाधिराज, परमेश्वर एवं परमभट्टारक की उपाधि धारण की थी।
विक्रमादित्य की उपाधि कलचुरी शासक गांगेयदेव ने धारण की थी।
विक्रमादित्य की उपाधि किस कलचुरी शासक ने धारण की थी?
विजयकोण्ड की उपाधि चोल शासक राजाधिराज प्रथम ने धारण की थी।
समलोत्तरपथनाथ की उपाधि वातापी के चालुक्य वंश के शासक विनयादित्य द्वितीय ने धारण की थी।
सिन्धुराज ने कुमार नारायण एवं साहसांक की उपाधियां धारण की थी।