पुलकेशिन द्वितीय को ‘दक्षिण का स्वामी’ हर्ष ने स्वीकार किया था।
पुलकेशिन द्वितीय ने हर्ष को पराजित कर ‘परमेश्वर उपाधि’ धारण की थी।
प्रसिद्ध विद्वान बाणभट्ट को हर्ष का संरक्षण प्राप्त था।