ईरानी आक्रमण के चलते पश्चिमोत्तर भारत में खरोष्ठी लिपि का प्रचार हुआ था।
तख्तेबही अभिलेख खरोष्ठी लिपि में लिखा गया था।
दायें से बायें लिखी जाने वाली लिपि खरोष्ठी कहलाती थी।
प्राचीन भारत के सिक्कों पर मुख्यतया ब्राह्मी, खरोष्ठी एवं ग्रीक लिपि का प्रयोग किया जाता था।
मौर्यकालीन शिलालेख मानसेहरा खरोष्ठी लिपि में है।
मौर्यकालीन शिलालेख शाहबाजगढ़ी खरोष्ठी लिपि में है।